दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल जेल से जमानत पर छूटने के बाद भाजपा के लिए मुश्किलें बढ़ा रहे हैं। वे अपने बयानों से चुनावी विमर्श को बदलने का प्रयास कर रहे हैं, जिससे भाजपा को प्रतिक्रिया देने में कठिनाई हो रही है। भाजपा के दिल्ली प्रदेश के नेता केजरीवाल पर तंज कसते हुए कह रहे हैं कि उन्हें एक जून के बाद फिर से जेल जाना होगा, जिससे भाजपा की खिसियाहट जाहिर होती है। केजरीवाल का नया विमर्श भाजपा के लिए हानिकारक साबित हो सकता है, जबकि भाजपा के नेता हिंदू-मुस्लिम और भारत-पाकिस्तान के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं।
केजरीवाल के बयान भाजपा के लिए चिंता का कारण बन रहे हैं। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद नियम बनाया है कि 75 साल से ऊपर का कोई व्यक्ति पार्टी में नहीं रहेगा, जिससे यह अटकलें लगाई जा रही हैं कि मोदी अगले साल 75 साल के होने पर कुर्सी छोड़ देंगे और अमित शाह प्रधानमंत्री बनेंगे। इस पर अमित शाह ने प्रतिक्रिया दी, जिससे यह स्पष्ट हो गया कि मोदी बीच में हट सकते हैं। इस प्रकार केजरीवाल के बयान उत्तर भारत में भाजपा को नुकसान पहुंचा सकते हैं।
इसके अलावा, केजरीवाल का यह दावा कि 2024 का लोकसभा चुनाव मोदी के नाम पर लड़ा जा रहा है, भाजपा के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकता है। मोदी हर सभा में अपने लिए वोट मांगते हैं और अपनी गारंटी देते हैं। यदि आम मतदाता को लगता है कि मोदी बीच में ही हट सकते हैं, तो मतदाताओं में उदासीनता आ सकती है। इससे चुनाव के प्रति लोगों का उत्साह कम हो सकता है।
केजरीवाल के बयानों से भाजपा के भीतर अविश्वास भी पैदा हो सकता है और उत्तराधिकार की लड़ाई शुरू हो सकती है। उन्होंने कहा कि योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री पद से हटाया जा सकता है, जिससे भाजपा में आंतरिक संघर्ष बढ़ सकता है। केजरीवाल ने पहले अपनी पार्टी के भीतर इस प्रकार के अफवाह फैलाए थे, लेकिन अब भाजपा के खिलाफ यही रणनीति अपना रहे हैं।
इसके अलावा, केजरीवाल ने मोदी की गारंटियों पर सवाल उठाकर अपनी 10 गारंटियों का ऐलान किया है। उनकी पार्टी 543 में से सिर्फ 20 सीटों पर चुनाव लड़ रही है, लेकिन वे पूरे देश के लिए गारंटी दे रहे हैं। इसका उद्देश्य मोदी की गारंटियों का महत्व कम करना और अपने को राष्ट्रीय राजनीतिक विमर्श में प्रासंगिक बनाना है।
इस प्रकार, केजरीवाल के बयान और चुनावी रणनीति भाजपा के लिए गंभीर चुनौतियां पैदा कर रहे हैं। अगर मौजूदा स्थिति बनी रहती है, तो मतदाता चुनाव की पूरी प्रक्रिया को बदल सकते हैं और राजनेताओं को इसके परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं।